जब हम किसी को 'किस' करते हैं तो एक 'किस' के दौरान करीब 8 करोड़ बैक्टीरिया का आदान प्रदान होता है। इनमें से सभी बैक्टीरिया नुकसान पहुंचाने वाले नहीं हों, ऐसा भी नहीं है। इसके बावजूद कोई भी व्यक्ति शायद ही अपनी पहली 'किस' भूल पाता हो। इतना ही नहीं रोमांटिक जीवन में चुंबन की अपनी अहम भूमिका भी है। पश्चिमी समाज में एक दूसरे को 'किस' करने का चलन कुछ ज्यादा है। पश्चिमी दुनिया के लोग ये भी मानते हैं कि 'किसिंग' करना दुनिया भर का सामान्य व्यवहार है।
लेकिन एक नए अध्ययन के मुताबिक मनुष्यों में ये चलन दुनिया की सभी संस्कृतियों में नहीं है, आधे से भी कम में ही 'किस' का प्रचलन है। इतना ही नहीं 'किस' करने की प्रवृति जानवरों की दुनिया में भी दुर्लभ ही है।
ऐसे में 'किस' करने के व्यवहार का चलन क्या है? अगर यह उपयोगी है तो फिर ऐसा तो सभी जानवरों को करना चाहिए, या फिर सभी इंसानों को करना चाहिए? हालांकि हकीकत यह है कि ज्यादातक जानवर 'किस' नहीं करते हैं।
इस नए अध्ययन में दुनिया के 168 संस्कृतियों का अध्ययन किया गया है, जिसमें केवल 46 प्रतिशत संस्कृतियों में लोग रोमांटिक पलों में अपने साथी को 'किस' करते हैं। पहले यह अनुमान लगाया
इस अध्ययन में केवल 'लिप किस' का अध्ययन किया गया है। माता-पिता अपने बच्चों को जो 'किस' करते हैं उसे अध्ययन में शामिल नहीं किया गया है। कई आदिम समुदाय के लोगों में 'किस' करने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। ब्राजील के मेहिनाकू जनजातीय समुदाय में इसे अशिष्टता माना जाता है।
ऐसे समुदाय आधुनिक मानव के सबसे नजदीकी पूर्वज माने जाते हैं, इस लिहाज से देखें तो हमारे पूर्वजों में भी 'किस' करने का चलन शायद नहीं रहा होगा। इस अध्ययन दल के प्रमुख और लॉस वेगास यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विलियम जानकोवायक के मुताबिक यह सभी मानवों के स्वभाव में नहीं है।
प्रोफेसर विलियम जानकोवायक के मुताबिक 'किस' करना पश्चिमी समुदाय की देन है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में जाता रहा है। इस विचार को सत्य के करीब मानने के लिए कुछ ऐतिहासिक कारण भी मौजूद हैं।
ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के प्रोफ़ेसर राफ़ेल वलोडारस्की कहते हैं कि 'किस' करना हाल-फिलहाल का चलन है। 'किस' जैसी किसी क्रिया का सबसे पुराना उदाहरण हिंदुओं की वैदिक संस्कृति में मिलता है जो करीब 3500 साल पुराना है।
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