कोई स्वप्न तैरता नहीं
उस बच्चे की शुष्क दृष्टि में
जो नित्य आता है
मेरे घर के पास कूड़ा छाँटने
अपने नन्हे सुकुमार हाथों से
प्रचंड होमाग्नि के ताप में
यज्ञ की समस्त समिधा
जैसे श्यामित होती है
ऐसी है कृष्णक देह उसकी
विलक्षण अष्टधातु प्रतिमा जैसे
बच्चा बोरा लिए द्रुतगामी है
रास्ते के आवारा कुत्ते उसको
बदहवास दौडाते हैं
बच्चा परिचित है अपने प्रति
कुत्ते और इंसान की नफरत से
कचरे के टीले पर
सुअरों के समूह के पास
बच्चा बैठा है, और अब
बच्चे और सुअर में अंतर करना
दुष्कर हो जैसे
शरीर पर धूल रमाए, बच्चा
लगता है औघड़ शम्भू सा
कुरेदता ऐसे कूड़ा है
विकराल अघोरी खुरचता
चिता की भस्म जैसे
● अनुजीत इकबाल
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