EOW के अफसरों के सामने छह घंटे की लगातार पूछताछ में एपी मिश्र अफसरों के कई सवालों का जवाब ही नहीं दे पाए। ईओडब्ल्यू ने पूछताछ के दौरान कई तथ्य पहले से जुटा रखे थे। पूर्व एमडी से अफसरों ने पूछा कि 15 मार्च, 2017 को डीएचएफएल ने अपना कोटेशन दिया था। फिर 16 मार्च को दो और कंपनियों से भी कोटेशन लिया गया? ईओडब्ल्यू के अधिकारियों का दावा है कि छानबीन में तथ्य हाथ लगे हैं कि फिर अचानक ही 16 मार्च की शाम तक डीएचएफएल में पीएफ का रुपया जमा करने के लिए सहमति दे दी गई थी। यही नहीं 17 मार्च को ही डीएचएफएल के खाते में 18 करोड़ रुपये आरटीजीएस (जमा) भी करा दिए गए। आखिर इतनी जल्दी क्यों दिखाई गई? इस पर एपी मिश्र संतोषजनक जवाब नहीं दे सके।
अफसरों ने यह भी पूछा कि जब आपने 16 मार्च 2017 को इस्तीफा दे दिया था और उसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई थी। फिर भी 22 मार्च की बोर्ड की मीटिंग में आप शामिल हुए। यहीं नहीं 23 मार्च को इस्तीफा स्वीकार हो गया। इसके बाद आपने मीटिंग की तारीख में हेरफेर कर दस्तोवजों में 24 मार्च दिखाया, फिर उसे काट कर 22 मार्च किया गया। इसकी वजह क्या थी? इस पर एपी मिश्र मौन ही रहे।
ईओडब्ल्यू की पड़ताल में यह भी सामने आया है कि जिस समय पीएफ घोटाले की रकम डीएचएफएल में जमा की जा रही थी, उस समय विभाग के दो अधिकारियों ने ऐसा करने से मना भी किया था पर, तब पूर्व एमडी ने जवाब दिया था कि ऐसा ही ऊपर से करने का आदेश है। इन अफसरों को तब डांट भी पड़ी थी। ईओडब्ल्यू ने बताया कि इन दोनों अफसरों के बयान इस केस में अहम भूमिका निभाएंगे।
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