दीन और धर्म का असल उद्देष्य इंसान की दुनियावी जिंदगी को संवारना और इसे सफल बनाना है ताकि इंसान की आखिरत बेहतर हो सके और अज़ाब से आगाह करना ताकि मजबूरन इंसान नेकी के रास्ते पर चले। कुरआन कहता हैः ऐ रब हमें दुनिया में भी भलाई दे, हमें आखिरत में भलाई दें और हमें दोज़ख के अज़ाब से बचा। कुरआन की तरतीब और मंषा यह है कि इंसान अल्लाह के कानून के अनुसार अपनी जिंदगी गुज़ारे और दुनिया व आखिरत दोनों में अल्लाह से भलाई का तलबगार बने और कुरआन कहता है कि जब इंसान इस तरह अपनी जिंदगी गुजारता है तो उसकी जिंदगी इस दुनिया में अमल का नमूना तो बनती ही है, आखिरत में भी उसे खैर का एक बड़ा हिस्सा अता किया जाता है।
कुरआन के नाजिल होने और हुजुर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के भेजे जाने का उद्देष्य यही है कि इंसान के दुनियावी मामले बेहतर हो जाएं चाहे वह मामले जाति हो, धार्मिक हों, सामाजिक हों, पारिवारिक हों, वैवाहिक हों, व्यक्तिगत हों, चाहे क्षेत्रीय या वैष्विक हों। असल उद्देष्य यह है कि इंसान की षख्सियत संवर जाए और इसकी सारी ताकत आखिरत को बेहतर बनानंे में खर्च हो और उसके लिए आवष्यक है कि इंसान आखिरत की चिंता को अपने पल्ले बांध ले। इंसान जिस तरह के भी मामलों से समझौता कर रहा हो ये बात सामने हो कि इससे कोई ऐसी बात सरज़द ना हो जाए जो इसकी आखिरत तबाह कर दे। यही वजह है कि कुरआन ने ऐसे लोगों को जन्नत में होना बयान किया है जो इस दुनिया में अल्लाह के जिक्र में डूब कर और आखिरत की चिंता में हैरान परेषान रहते है।
हज़रत उमर बिन खत्ताब रज़ीअल्लाहु अन्हु फरमातेंः लांेगों अपने आमाल को (हक़ व बातिल के तराजू पर) खुद ही तौल लो इससे पहले कि वह अमल के तराजू पर तोले जाएं (अर्थात नेकियों के काम इसी दुनिया में मौत से पहले अंजाम दो)। इसी दुनिया में अपनी जिंदगी का हिसाब कर लो इससे पहले कि क़यामत में तुम से (तुम्हारे आमाल का) हिसाब लिया जाए और सबसे बड़ी पेषी के दिन के लिए (इसी दुनिया में नेक काम से अपनी षख्सियत को) सजा लो और वह दिन कयामत का है।
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