कोरोना वायरस से बच्चे अभी महफूज हैं और संक्रमित होने वालों की संख्या बड़े लोगों की तुलना में कम है। हालांकि, दो नए अध्ययन में पता चला है कि बच्चे भी वायरस के वाहक हो सकते हैं। बच्चों में अब तक सामान्य तरह के लक्षण दिखे हैं। इसकी पहचान नहीं हुई तो ये दूसरों को संक्रमित करने में देर नहीं करेंगे।
साइंस जर्नल में प्रकाशित शोध में चीन के वुहान और शंघाई का जिक्र किया गया है जहां संक्रमण की चपेट में आने वालों में बच्चे तीसरे स्थान पर थे। लेकिन जब स्कूल खुले तो बच्चों में संक्रमण के मामले बढ़ गए और ये खतरा तीन गुना तक बढ़ गया। इटली के ब्रुनो केसलर फाउंडेशन से जुड़ी मैथेमेटिकल एपिडेमोलॉजिस्ट (महामारी गणितज्ञ) मार्को एजेली का कहना है कि स्कूल बंद रखकर संक्रमण को रोकना संभव नहीं है, पर इससे संक्रमण की गति को 40 से 60 फीसदी तक धीमा किया जा सकता है।
जिन बच्चों में लक्षण नहीं उनमें वायरस अधिक
बर्लिन के वायरोलॉजिस्ट डॉ. क्रिश्चियन ड्रॉस्टेन का कहना है कि 47 संक्रमित बच्चों पर अध्ययन किया गया जिनकी उम्र 1 से 11 वर्ष के बीच थी। इसमें से 15 बच्चों को गंभीर हालत के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। बाकी बच्चों में बीमारी का कोई लक्षण नहीं था। हैरान करने वाली बात ये है कि जिन बच्चों में लक्षण नहीं था उनमें वायरल लोड यानी वायरस की संख्या बड़े लोगों की तुलना में अधिक थी जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे थे।
स्कूल खोलना खतरे से खाली नहीं--कोलंबिया यूनिवर्सिटी के महामारी विशेषज्ञ डॉ. जेफरी शामन का कहना है कि स्कूल खोलना खतरे खाली नहीं है। ऐसा बिलकुल भी नहीं है कि बच्चे इस वायरस की चपेट में नहीं आएंगे। जो देश ऐसा कर रहे हैं उन्हें एक बार अपने फैसले पर दोबारा मंथन करने की जरूरत है क्योंकि ये भविष्य की पीढ़ी के जीवन का सवाल है। बच्चों को घर पर पढ़ाने के तौर-तरीकों पर विचार करना होगा ताकि उनकी जान मुश्किल में न पड़े।
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