चार साल पहले चाहबहार पोस्ट और रेल नेटवर्क को लेकर भारत के साथ ईरान ने जो डील की थी, अब वह एक तरह से मटियामेट हो गई और ईरान इस प्रोजेक्ट पर भारत के बगैर आगे बढ़ेगा. दूसरी खबर ये आई कि चीन ने ईरान के ऊर्जा और इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में 400 अरब डॉलर की डील के ज़रिये न केवल मिडिल ईस्ट के अहम देश में जड़ें जमा ली हैं, बल्कि वहां से भारत का पत्ता साफ करने में भूमिका निभाई है.
ये मामूली नहीं बल्कि अहमियत वाले समाचार हैं क्योंकि इससे भारत और चीन के बीच बने हुए तनाव में चीन के खाते में एक और बढ़त साफ जाती है. दूसरे, ये भी कि इससे मध्य पूर्व की भू-राजनीतिक स्थितियों में भारी बदलाव होंगे और इनसे भारत के बजाय चीन को फायदा मिलेगा. कैसे और क्यों? तमाम पहलुओं को ठीक से समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है. मीडिया में कहा गया कि ईरान ने चाबहार से अफगानिस्तान बॉर्डर से सटे ज़ेहेदान के बीच लंबी रेल लाइन के प्रोजेक्ट पर भारतीय सरकार की फंडिंग में हो रही लेटलतीफी के चलते अकेले ही आगे बढ़ने का मन बना लिया है. इस खबर के आते ही कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने मोदी सरकार की नीतियों को कठघरे में भी खड़ा किया और सवाल पूछे.
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