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आनलाइन कक्षा में धारा 12(1)(ग) के तहत पढ़ने वाले बच्चों के साथ भेदभाव

आनलाइन कक्षा में धारा 12(1)(ग) के तहत पढ़ने वाले बच्चों के साथ भेदभाव

2020-09-25 13:47:07
आनलाइन कक्षा में धारा 12(1)(ग) के तहत पढ़ने वाले बच्चों के साथ भेदभाव

lucknow-शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत पिछले वर्षों में दाखिला प्राप्त बच्चों को आॅनलाइन कक्षा में हिस्सा लेने में दिक्कत आ रही है जिससे वे पढ़ाई में पिछड़ रहे हैं। निजी विद्यालय उन्हें आॅनलाइन कक्षा में शामिल नहीं कर रहे। किसी न किसी नाम पर पैसा मांगा जा रहा है। माता-पिता पर स्मार्ट फोन खरीदने का भी दबाव बनाया जा रहा है। सरकार की तरफ से प्रति बच्चा प्रति वर्ष किताब व पोशाक हेतु मिलने वाला रु. 5,000 अभी पिछले शैक्षणिक वर्ष का भी नहीं मिला है। ऐसे में माता पिता बच्चों के लिए स्मार्ट फोन खरीद पाने में असमर्थ हैं।
हमारी मांग है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत दाखिला प्राप्त व सरकारी विद्यालयों के सभी बच्चों को सरकार की तरफ से मोबाइल फोन उपलब्ध कराया जाए ताकि वे आॅनलाइन कक्षा में भाग ले सकें। अन्य बच्चों के लिए कोरोना काल में शुल्क माफ हो या उसमें रियायत मिलनी चाहिए। कई माता-पिता का रोजगार प्रभावित होने के कारण वे शुल्क दे पाने में असमर्थ हैं।
लाॅटरी में नाम आ जाने के बावजूद भी विद्यालय बेसिक शिक्षा कार्यालय से कोई पत्र प्राप्त न होने का बहाना बना कर बच्चों का दाखिला नहीं लेते। प्रवेश शुल्क, परीक्षा शुल्क, आदि किसी न किसी नाम पर शुल्क जमा करने के लिए अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं जबकि अधिनियम के तहत बच्चे के लिए शिक्षा मुफ्त होनी चाहिए।
हलांकि शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत न्यूनतम 25 प्रतिशत अलाभित समूह व दुर्बल वर्ग के बच्चों के दाखिले का प्रावधान है किंतु इस बार भी विद्यालयों द्वारा दाखिले हेतु स्थान निश्चित कर दिए गए थे, जो 25 प्रतिशत से कम हैं, और कुछ बच्चों को लाॅटरी की प्रकिया से शिक्षा से वंचित कर दिया गया जो बच्चे के संविधान प्रदत्त शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। जिन बच्चों ने भी की धारा 12(1)(ग) के तहत आवेदन किया है उन्हें किसी न किसी विद्यालय में दाखिला दिलाने की जिम्मेदारी सरकार की है क्योंकि अधिनियम के तहत बच्चे के लिए शिक्षा अनिवार्य है।
शिक्षा के अधिकार अधिनियम की धारा 12(1)(ग) के तहत दाखिला प्राप्त बच्चों के साथ भेदभाव बंद होना चाहिए तथा निजी विद्यालयों का राष्ट्रीयकरण करते हुए उनकी मनमानी समाप्त की जानी चाहिए और समान शिक्षा प्रणाली लागू करनी चाहिए। जब तक ऐसा न हो तब तक 2015 के उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल के फैसले कि सरकारी वेतन पाने वालों के बच्चों के लिए सरकारी विद्यालय में पढ़ना अनिवार्य हो को लागू करना चाहिए जिससे सरकारी विद्यालयों की गुणवत्ता में सुधार हो।

यह बाते आज रवीन्द्र अभिभावक मंच, प्रवीण श्रीवास्तव नींव, नीलम वैश्य बाल सभा, बबलू माडर्न ग्रामीण जन कल्याण समिति, समाज सेवी संदीप पाण्डेय और अभ्युदय प्रताप सिंह सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) की तरफ से एक प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से जारी किया गया है।

 


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