लखनऊः-शैक्षिक कार्यक्रम के अन्र्तगत आज राज्य संग्रहालय, लखनऊ में चित्रकला अनुभाग द्वारा कला में कृष्ण विषयक लघुचित्रों पर आधारित छायाचित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन शिशिर विशेष सचिव, संस्कृति विभाग, उ0प्र0 शासन एवं निदेशक उ0प्र0 सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग द्वारा किया गया। प्रदर्शनी में कृष्ण-जीवन की घटनाओं के विविध पक्षों को लघुचित्रों के माध्यम से व्यापक एवं सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया गया है। ये चित्र मेवाड, बूंदी, कोटा, जयपुर, किशनगढ़, बसौहली, दतिया, मालवा, गढ़वाल तथा कांगड़ा आदि शैलियों का प्रतिनिधित्व करते है। कृष्ण की विविध लीलाओं में उनकी बाललीला, रासलीला तत्पश्चात् उनके द्वारा कंस वध एवं महाभारत युद्ध में कृष्ण के चरित्र को बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया गया है। यह प्रदर्शनी दर्शकों के अवलोकनार्थ दिनांक 30 मार्च, 2019 तक खुली रहेगी। प्रदर्शनी के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि श्री शिशिर ने प्रदर्शित चित्रों की सराहना करते हुए अपनी शुभकामना व्यक्त की और सांस्कृतिक धार्मिक परम्परा से सम्बन्धित ज्ञान के संवर्धन के लिए इस तरह के आयोजन समय-समय पर संग्रहालय द्वारा आयोजित कराये जाने पर बल दिया।
भारतीय संास्कृतिक परम्परा में कृष्ण को भगवान विष्णु के आठवें पूर्ण अवतार के रूप में मान्यता प्राप्त है। पौराणिक कथाओं तथा हिन्दू मान्यताओं के अनुसार कंस जैसे अत्याचारी शासकों से प्रजा को मुक्ति दिलाने तथा धर्म को पुनस्र्थापित करने हेतु भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में अवतार लिया था। कृष्ण तत्व ने राष्ट्रीय ऐक्य के संवर्धन में विशिष्ट योगदान दिया। प्रदर्शनी में श्री कृष्ण के जन्म से सम्बन्धित कथा का वर्णनात्मक रूप में एवं माखनचोर रूप में बालक के नटखट स्वरूप एवं माता द्वारा दण्डित करने का मनोहरी निरूपण कांगड़ा शैली के ऊखल बन्धन नामक चित्र में दृष्टव्य है।
श्रंृगार विषय पर आधारित यमुना के किनारे प्राकृतिक सुरम्य वातावरण में नायक-नायिका रूप में कृष्ण एवं राधा का अंकन आदर्श प्रेम (आत्मा का परमात्मा से मिलन) का प्रतीक हैै। कृष्ण द्वारा असुरों का संहार एवं उद्धार किया गया तथा कंस वध द्वारा प्रजा को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई, जिसका गतिमान शैली में चित्रण प्रदर्शित बकासुर वध, व्योमासुर वध, के भीश्वध चित्रों में देखा जा सकता है। इसी क्रम में द्रौेपदी चीर-हरण एवं महाभारत के कथानक से सम्बन्धित दृश्यों की झलक देखी जा सकती है। इन चित्रों में कृष्ण अर्जुन के सारथी के रूप में यु़़द्ध का संचालन कर रहे है, जो उनके एक कुशल राजनयिक, रणनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, महान उपदेशक एवं दार्शनिक स्वरूप को परिलक्षित करता है। महाभारत के युद्व की समाप्ति के पश्चात् कृष्ण का विश्वरूप दर्शन उनकी व्यापकता एवं श्रेष्ठता को अभिव्यक्त करता है, जिसमें सम्पूर्ण चराचर जगत तथा देवमण्डल स्वयं विष्णु में ही निहित है।
उ0प्र0 संग्रहालय निदेशालय के निदेशक डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह ने बताया कि ये चित्र गीता के चैथे अध्याय में वर्णित श्लोक के मूल अर्थ अधर्म पर धर्म की पताका को उद्घोषित करते है। उन्होंने आगे बताया कि संग्रहालय ज्ञान का वातायन, भविष्य का शिक्षक, अतीत का संरक्षक एवं भविष्य का उन्नायक है,जहां संग्रहालय एक तरफ पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है वही दूसरी तरफ जिज्ञासुओं के लिए प्रेरणा स्थल। यह प्रदर्शनी निःसन्देह जन सामान्य एवं छात्र-छात्राओं के लिये विशेष रूचिकर होगी।
इस अवसर पर संस्कृति निदेशालय, उ0प्र0 की वित्त नियंत्रक श्रीमती सरोज श्रीवास्तव, राज्य संग्रहालय, लखनऊ की सहायक निदेशक श्रीमती रेनू द्विवेदी, डा0 मीनाक्षी खेमका तथा लोक कला संग्रहालय एवं उ0प्र0 पुरातत्व निदेशालय के डाॅ0 राजीव कुमार, ज्ञानेन्द्र कुमार रस्तोगी एवं नरसिंह त्यागी सहायक पुरातत्व अधिकारी एवं कर्मचारीगण उपस्थित रहे।
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