NEW DELHI-केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय में अपने उस हालिया कानून को सही ठहराया जिसके तहत समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके (ईडब्ल्यूएस) को 10 फीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है। केंद्र ने कहा कि 'अपने आर्थिक दर्जे की वजह से पिछड़ गए लोगों को उच्च शिक्षा और रोजगार में समान अवसर मुहैया कराकर सामाजिक समानता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से यह कानून लाया गया है।' सरकार ने कहा कि नया कानून 1992 के इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (मंडल मामले में फैसला) के दायरे में नहीं आएगा क्योंकि आरक्षण के लिये प्रावधान संविधान में संशोधन करके किया गया है।
केंद्र की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है, ''संविधान संशोधन (103 वां) अधिनियम 2019 की जरूरत समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को लाभ पहुंचाने के लिये पड़ी, जो आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था के भीतर नहीं आ रहे थे। आंकड़ों के हिसाब से ऐसे लोगों की संख्या भारत की आबादी में अच्छी खासी है।" केंद्र ने कहा कि समाज के सभी कमजोर तबकों के साथ न्याय करने के लिये ''इसे जरूरी समझा गया कि संविधान में उचित संशोधन किया जाए ताकि राज्य आरक्षण की किसी भी मौजूदा व्यवस्था के दायरे में नहीं आ रहे समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को शैक्षणिक संस्थानों और सार्वजनिक रोजगार में आरक्षण समेत विभिन्न लाभ देने में सक्षम हो सके।
केंद्र ने हलफनामा उन याचिकाओं के जवाब में दायर किया है जिसमें संविधान (103 वां संशोधन) अधिनियम, 2019 को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह फैसला इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ मामले में दिये गए फैसले के विपरीत है और यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करता है। हलफनामे में कहा गया है, ''यह कहा जाता है कि इंदिरा साहनी मामले में जो निष्कर्ष दिये गए थे वे मौजूदा मामले में लागू नहीं होते हैं क्योंकि वह फैसला 1990 में भारत सरकार द्वारा जारी कुछ कार्यालय ज्ञापन की संवैधानिक वैधता का निर्धारण करते हुए दिया गया था, जिसमें राज्य के तहत सेवाओं में पिछड़े वर्ग के नागरिकों के लिये आरक्षण का प्रावधान था।"
हलफनामे में कहा गया है, ''इंदिरा साहनी मामले में फैसला और निष्कर्ष इसलिये लागू नहीं होता है।" सरकार ने कहा कि ये संशोधन संवैधानिक सिद्धांतों के अनुसार हैं और इसलिये मूल ढांचे के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करते हैं। सोमवार (11 मार्च) को शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके को 10 फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर फिलहाल कोई आदेश पारित करने के पक्ष में नहीं है। उसने एनजीओ जनहित अभियान द्वारा दायर याचिका समेत अन्य याचिकाओं को 28 मार्च को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध किया था और कहा था कि वह इस बात पर विचार करेगा कि क्या मामले को संविधान पीठ के पास भेजने की जरूरत है। शीर्ष अदालत ने इससे पहले समाज के आर्थिक रूप से कमजोर तबके के लोगों को शिक्षण संस्थानों में दाखिले और सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण देने के केंद्र के फैसले पर रोक लगाने से मना कर दिया था।
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