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इस युग की ‘विश्व एकता’ सबसे बड़ी आवश्यकता है-- डा0 जगदीश गांधी

इस युग की ‘विश्व एकता’ सबसे बड़ी आवश्यकता है-- डा0 जगदीश गांधी

2019-07-03 10:25:29
इस युग की ‘विश्व एकता’ सबसे बड़ी आवश्यकता है-- डा0 जगदीश गांधी

(रामायण में कहा गया है कि ‘जब जब होहिं धरम की हानी। बाढ़हि असुर, अधर्म, अभिमानी।। तब-तब धरि प्रभु बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।’ अर्थात जब-जब इस धरती पर अधर्म बढ़ता है तथा असुर, अधर्मी एवं अहंकारियों के अत्याचार अत्यधिक बढ़ जाते हैं, तब-तब ईश्वर नये-नये रूप धारण कर मानवता का उद्धार करने, उन्हें सच्चा मार्ग दिखाने आते हैं। इसी प्रकार महाभारत में परमात्मा की ओर से वचन दिया गया है कि ‘यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत,
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्। परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।।’ अर्थात धर्म की रक्षा के लिए मैं युग-युग में अपने को सृजित करता हूँ। सज्जनों का कल्याण करता हूँ तथा दुष्टों का विनाश करता हूँं। धर्म की संस्थापना करता हूँ। अर्थात एक बार स्थापित धर्म की शिक्षाओं को पुनः तरोताजा करता हूँ।
(2) परमपिता परमात्मा अर्थात एक ही स्रोत से सभी संदेशवाहक मनुष्य को आत्मा का ज्ञान देने के लिए युग-युग में धरती में अवतरित हुए हैं। मनुष्य की तरह ही इन संदेशवाहकों का जन्म भी होता है तथा मृत्यु भी होती है। परमपिता परमात्मा इस सारी सृष्टि का सदैव से एक ही रहा है। वह अपरिवर्तनीय है। परमपिता परमात्मा को हम अपनी भाषा की सुविधानुसार अलग-अलग नामों जैसे ईश्वर, अल्ला, गॉड, खुदा, भगवान, प्रभु, वाहे गुरू आदि-आदि से पुकारते हैं। परमपिता परमात्मा के संदेश को ही मानव जाति में फैलाने का प्रभु के संदेशवाहकों का एकमात्र उद्देश्य होता है। संदेशवाहकों की अपनी कोई भौतिक तथा सांसारिक इच्छा नहीं होती है। परमात्मा स्वयं शरीर धारण नहीं कर सकता इसलिए वह संसार के किसी सबसे पवित्र मनोशरीर यंत्र के मुँह के माध्यम से दिव्य ज्ञान को मानव जाति के कल्याण के लिए संसार में अवतरित करता है। इस दिव्य ज्ञान को गीता, त्रिपटक, बाइबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे-अकदस आदि पवित्र पुस्तकों के रूप में संकलित करके तथा विभिन्न भाषा में अनुवादित करके उनके अनुयायियों द्वारा सारे संसार में फैला दिया जाता है।
(3) 7500 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक राम ने शरीर के पिता राजा दशरथ के वचन को निभाने के लिए हँसते हुए राज्याभिषेक के ठीक पूर्व 14 वर्षों के लिए वन जाने का कठोर निर्णय सहर्ष लिया। राम अपनी पत्नी सीता तथा भाई लक्ष्मण के साथ 14 वर्षो तक वनवास के कठोर कष्टों को हंसते हुए सहन करने के कारण राम का शरीर चलता-फिरता मंदिर के समान था। राम की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। इसके विपरीत चारों वेदों के ज्ञाता रावण ने बुराइयों से नाता जोड़कर अपने शरीर को शैतान का घर बनाकर अपना विनाश कर लिया। श्रीराम ने अपने जीवन के द्वारा मानव जाति को मर्यादित जीवन जीने का संदेश दिया। पवित्र रामायण की शिक्षायें केवल हिन्दूओं के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है!
(4) 5000 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ। कृष्ण ने बचपन में ही ईश्वर की इच्छा तथा आज्ञा को पहचान लिया और उनमें अपार ईश्वरीय ज्ञान व ईश्वरीय शक्ति आ गई और उन्होंने बाल्यावस्था में ही कंस का अंत किया। इसके साथ ही उन्होंने कौरवों के अन्याय को खत्म करके धरती पर न्याय की स्थापना के लिए महाभारत के युद्ध की रचना की। इस प्रकार कृष्ण का शरीर चलता-फिरता मंदिर के समान था। कृष्ण की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। इसके विपरीत अन्याय के मार्ग में चलकर कंस तथा कौरवों ने अपने शरीरों को शैतान का घर बनाकर अपना विनाश कर लिया। श्रीकृष्ण ने अपने जीवन के द्वारा मानव जाति को ‘न्याय लिए अपने बन्धु को भी दण्ड देने’ का संदेश दिया। पवित्र गीता की शिक्षायें केवल हिन्दूओं के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है!
(5) 2500 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक बुद्ध ने मानव जाति को सामाजिक कुरीतियों-अन्याय से मुक्ति दिलाने तथा ईश्वरीय प्रकाश का मार्ग ढूंढ़ने के लिए राजसी भोगविलास त्याग दिया और अनेक प्रकार के शारीरिक कष्ट झेले। बुद्ध ने मानव जाति को बताया कि जाति प्रथा मानव निर्मित है यह ईश्वरीय आज्ञा नहीं है। समता ईश्वरीय आज्ञा है। बुद्ध का शरीर चलता-फिरता बोध विहार था। बुद्ध की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। इसके विपरीत उनके विरोधियों ने अपने शरीर को शैतान का घर बनाकर अपना विनाश कर लिया। महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन के द्वारा मानव जाति को समता का संदेश दिया। पवित्र त्रिपटक की शिक्षायें केवल बुद्धों के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है!
(6) 2000 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक ईशु मानव जाति को प्रेम तथा करूणा की सीख देने के लिए धरती पर आये। ईशु ने मानव जाति के कल्याण के लिए अपने शरीर का हंसते-हंसते बलिदान कर दिया। जिन लोगों ने ईशु को सूली पर चढ़ाया उनको क्षमा करने की उन्होंने दयालु परमात्मा से प्रार्थना की। ईशु ने धरती पर करूणा का सागर बहाकर उनका शरीर को चलता-फिरता गिरजाघर जैसा पवित्र था। ईशु की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। इसके विपरीत उनका विरोध करने वालों ने अपने शरीर शैतान का घर बनाकर अपना विनाश कर लिया। प्रभु ईशु ने अपने जीवन के द्वारा मानव जाति को करूणा का संदेश दिया। पवित्र बाइबिल की शिक्षायें केवल ईसाइयों के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है!
(7) 1400 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक मोहम्मद साहब का अवतरण धरती पर ऐसे समय हुआ, जब भाई-भाई के खून का प्यासा हो गया था। बड़े कबीलें के लोग छोटे कबीलें की बहिन-बेटियों तथा उनके जानवरों को उठाकर ले जाते थे। वे अनेक प्रकार से उन्हें सताते थे। मोहम्मद साहब ने इस अन्याय का खुलकर विरोध किया। अल्ला की ओर से मोहम्मद साहब पर नाजिल हुई पवित्र कुरान की पहली सीख है कि खुदा रब्बुल आलमीन है अर्थात इस सारे संसार के सभी इंसान एक खुदा के बंदे हैं। धरती के किसी भी इंसान से नफरत करना, किसी का दिल दुखाना तथा सताना अल्ला की शिक्षाओं के खिलाफ है। मोहम्मद साहब का शरीर ही चलती-फिरती मस्जिद बन गई। मोहम्मद की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत खुदा अर्थात परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। वहीं उनका विरोध करने वालों ने अपने शरीरों को शैतान का घर बनाकर अपना विनाश कर लिया। मोहम्मद साहब ने अपने जीवन के द्वारा मानव जाति को भाईचारे का संदेश दिया। पवित्र कुरान की शिक्षायें केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है!
(8) 500 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक नानक को ईश्वर एक है तथा ईश्वर की दृष्टि में सारे मनुष्य एक समान हैं, के दिव्य प्रेम से ओतप्रोत सन्देश देने के कारण उन्हें रूढ़िवादिता से ग्रस्त कई बादशाहों, पण्डितों और मुल्लाओं का कड़ा विरोध सहना पड़ा। नानक ने प्रभु की इच्छा और आज्ञा को पहचान लिया था उन्होंने जगह-जगह घूमकर तत्कालीन अंधविश्वासों, पाखण्डों आदि का जमकर विरोध किया। नानक ने मानव जाति को सेवा तथा त्याग की सीख दी। नानक का शरीर चलता-फिरता पवित्र गुरूद्वारा था। नानक की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। परमपिता परमात्मा इसके विपरीत उनके
विरोधियों ने अपने शरीरों को शैतान का घर बनाकर अपना विनाश कर लिया। नानक ने अपने जीवन के द्वारा मानव जाति को त्याग का संदेश दिया। पवित्र गुरू ग्रन्थ साहेब की शिक्षायें केवल सिक्खों के लिए ही नहीं वरन् सारी मानव जाति के लिए है!
(9) 200 वर्ष पूर्व के प्रभु के युग संदेशवाहक एवं बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह (शाब्दिक अर्थ - प्रभु का प्रकाश) को प्रभु का कार्य करने के कारण 40 वर्षों तक जेल में असहनीय कष्ट सहने पड़े। जेल में ही बहाउल्लाह की आत्मा में प्रभु का प्रकाश आया। बहाउल्लाह की सीख है कि परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहिन सभी परिवारजनों के हृदय मिलकर एक हो जाये तो परिवार में स्वर्ग उतर आयेगा। इसी प्रकार सारे संसार में सभी के हृदय एक हो जाँये तो सारा संसार स्वर्ग समान बन जायेगा। बहाउल्लाह ने कहा कि संसार की प्रत्येक वह जगह धन्य है, जहां प्रभु की महिमा गायी जाती। बहाउल्लाह की आत्मा का कनेक्शन सीधे अपने स्रोत परमपिता परमात्मा से जुड़ा था। बहाउल्लाह ने अपने जीवन के द्वारा हृदय की एकता तथा विश्व एकता का संदेश मानव जाति को दिया है।
(10) हमें संदेशवाहक तथा युग संदेशवाहक के अन्तर को समझना चाहिए। हर संदेशवाहक अपने युग की आवश्यकता के अनुसार सबसे बड़ी समस्या का समाधान लेकर आता है। वह धरती पर अत्यन्त ही कठोर तथा पीड़ादायक जीवन जीकर लोगों का ध्यान परमात्मा की शिक्षाओं की ओर आकर्षित करता है। परमात्मा की दिव्य योजना के अनुसार अवतरित हुए किसी संदेशवाहक को छोटा-बड़ा करके देखना या भेदभाव करने की भूल हमें नहीं करनी चाहिए। परमात्मा की दृष्टि में सभी संदेशवाहक महान हैं। एक युग संदेशवाहक की शिक्षाओं का काल तथा समय अवधि परमात्मा की इच्छा पर निर्भर रहता है। जिस युग में युग संदेशवाहक आता है उस समय उसकी शिक्षाओं का प्रभाव तथा असर सबसे अधिक होता है। कालांतर में उनकी शिक्षायें धूमिल पड़ने लगती है तो परमात्मा पुनः एक नये युग संदेशवाहक को भेजता है।
(11) वे लोग कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने 7500 वर्ष पूर्व राम को प्रभु के संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके मयार्दित समाज के निर्माण में पूरे मनोयोग से उनका सहयोग किया। वे लोग कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने 5000 वर्ष पूर्व कृष्ण को प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके न्यायपूर्ण समाज के निर्माण में सहयोग किया। वे लोग कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने 2500 वर्ष पूर्व बुद्ध को प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके समतामूलक समाज के निर्माण में सहयोग किया।
(12) वे लोग कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने 2000 वर्ष पूर्व ईशु को प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके करूणा से भरे समाज के निर्माण में सहयोग किया। वे लोग कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने 1400 वर्ष पूर्व मोहम्मद साहेब को प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके भाईचारे से भरे समाज के निर्माण में सहयोग किया। वे लोग कितने भाग्यशाली होंगे जिन्होंने 500 वर्ष पूर्व नानक को प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके त्याग से भरे समाज के निर्माण में सहयोग किया। वे लोग कितने भाग्यशाली हैं जिन्होंने 200 वर्ष पूर्व बहाउल्लाह को प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में पहचानकर उनके हृदय की एकता से भरे समाज के निर्माण में सहयोग कर रहे हैं।
(13) युग संदेशवाहक की पहचान उसकी युगानुकूल शिक्षाओं से होती है। 21वीं सदी के युग की सबसे बड़ी समस्या का जो समाधान दे उसे ही इस युग के प्रभु के युग संदेशवाहक के रूप में मानना चाहिए। युग संदेशवाहक की पहचान किसी के बताने से नहीं होती वरन् स्वयं खोज करनी पड़ती है। बड़े सौभाग्य से युग संदेशवाहक की पहचान होती है। बहाउल्लाह की सीख है कि परिवार में दादा-दादी, माता-पिता, पति-पत्नी, पिता-पुत्र, भाई-बहिन सभी परिवारजनों के हृदय मिलकर एक हो जाये तो परिवार में स्वर्ग उतर आयेगा। इसी प्रकार सारे संसार में सभी के हृदय एक हो जाँये तो सारा संसार स्वर्ग समान बन जायेगा। बहाउल्लाह ने कहा है कि सब धर्मों का सार मानव मात्र की एकता स्थापित करना है और ‘‘हृदय की एकता’’ ही आज के युग की समस्याओं का एकमात्र समाधान है। बहाउल्लाह कहते है कि एकता की रोशनी इतनी शक्तिशाली है कि वह सारी धरती को प्रकाशित कर सकती है।
(14) जब सभी अवतारों का परमात्मा एक है तो हमारे अनेक कैसे हो सकते हैं? हमें संसार के प्रत्येक बालक को बाल्यावस्था से यह बताया जाना चाहिए कि ईश्वर एक है, धर्म एक है तथा मानव जाति एक है। इसके लिए हमें प्रत्येक बालक को बचपन से ही एक ही परमात्मा की ओर से युग अवतारों के माध्यम से दी गईं सभी शिक्षाओं का ज्ञान देने के साथ ही उन्हें इन शिक्षाओं पर चलने के लिए प्रेरित करना चाहिए। हमें अब प्रभु के संदेशवाहकों के स्थूल शरीर की पूजा तथा तरह-तरह से उसे सजाने वाले बनाने की बजाय उनके माध्यम से परमपिता परमात्मा की शिक्षाओं के अनुकूल कार्य करने वाले बनना चाहिए। अब हमारे रोजाना के प्रत्येक कार्य-व्यवसाय प्रभु की सुन्दर प्रार्थना बने। सभी पवित्र पुस्तकों के अब तक के संकलित ज्ञान को महानिचोड़ या तेज सार एक लाइन में यह है कि ईश्वरीय शिक्षाओं के अनुसार अपनी नौकरी या व्यवसाय करते हुए अपनी आत्मा के विकास का सबसे सरल उपाय है। ऐसे करने से मानव जीवन दोनों महान लक्ष्य पहला अजीविका तथा पृथ्वी लक्ष्य पूरे होते हैं। यही जीते जी मुक्ति का राजमार्ग है।

 

 


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