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पॉक्सो कानून में मृत्युदंड का प्रावधान शामिल

पॉक्सो कानून में मृत्युदंड का प्रावधान शामिल

2019-07-10 22:25:58
पॉक्सो कानून में मृत्युदंड का प्रावधान शामिल

NEW DELHI-केंद्रीय कैबिनेट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण विधेयक 2012 के संशोधन में जेंडर न्यूट्रल और सख्त सजा के प्रावधानों को मंजूरी दे दी है। इसके अलावा जुर्माना चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में भी सख्त कार्रवाई के साथ सजा के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है। इस विधेयक को इस साल के शुरू में दोनों सदनों में पेश किया गया था लेकिन इन्हें पारित नहीं किया गया था।
विधेयक में विकल्प प्रदान करने के लिए अधिनियम की धारा 4,5,6 और 9 में संशोधन की मांग की गई थी। इस पर कैबिनेट ने बुधवार को मासूमों से दुष्कर्म और प्रयास को कड़ी सजा और मृत्युदंड की परिधि में लाया गया है। इससे बच्चों के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न पर सजा के वर्तमान प्रावधानों को कठोर कर दिया गया है।
अब इस प्रस्ताव के पास होने के बाद 18 साल से कम उम्र के बच्चे वह चाहे किसी भी लिंग के हो यदि उनके विरुद्ध अपराध होता है तो मृत्युदंड का प्रावधान है। साथ ही अन्य मामलों में भी कड़ी सजा की सिफारिश की गई है। ताकि समाज के समाने कानून का डर बने और बच्चों के प्रति अपराधों में कमी आए। अब इस बिल को इन संशोधनों के साथ दोनों सदनों के पटल पर लाया जाएगा। ताकि इसे पास कराके कड़े कानूनों के तुरंत प्रभाव से लागू कराया जा सके।
बच्चों के साथ होने वाले यौन अपराधों की घटनाएं समाज को शर्मसार करती हैं। इस तरह के मामलों की बढ़ती संख्या देखकर सरकार ने वर्ष 2012 में एक विशेष कानून बनाया था। पॉक्सो कानून यानी की प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट 2012 जिसको हिंदी में लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों के संरक्षण का अधिनियम 2012 कहा जाता है।
इस कानून के तहत अलग-अलग अपराध में अलग-अलग सजा का प्रावधान है और यह भी ध्यान दिया जाता है कि इसका पालन कड़ाई से किया जा रहा है या नहीं। इस कानून की धारा चारा में वो मामले आते हैं जिसमें बच्चे के साथ कुकर्म या फिर दुष्कर्म किया गया हो। इस अधिनियम में सात साल की सजा से लेकर उम्रकैद तक का प्रावधान है साथ ही साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
इस अधिनियम की धारा छह के अंतर्गत वो मामले आते हैं जिनमें बच्चों के साथ कुकर्म, दुष्कर्म के बाद उनको चोट पहुंचाई गई हो। इस धारा के तहत 10 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा का प्रावधान है साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है। अगर धारा सात और आठ की बात की जाए तो उसमें ऐसे मामले आते हैं जिनमें बच्चों के गुप्तांग में चोट पहुंचाई जाती है। इसमें दोषियों को पांच से सात साल की सजा के साथ जुर्माना का भी प्रावधान है।
18 साल से कम किसी भी मासूम के साथ अगर दुराचार होता है तो वह पॉक्सो एक्ट के तहत आता है। इस कानून के लगने पर तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान है। इसके अतिरिक्त अधिनियम की धारा 11 के साथ यौन शोषण को भी परिभाषित किया जाता है। जिसका मतलब है कि यदि कोई भी व्यक्ति अगर किसी बच्चे को गलत नीयत से छूता है या फिर उसके साथ गलत हरकतें करने का प्रयास करता है या उसे पॉर्नोग्राफी दिखाता है तो उसे धारा 11 के तहत दोषी माना जाएगा। इस धारा के लगने पर दोषी को तीन साल तक की सजा हो सकती है।
सर्वश्रेष्ठ अंतरराष्ट्रीय बाल संरक्षण मानकों के अनुरूप, इस अधिनियम में यह प्रावधान है कि यदि कोई व्यक्ति यह जनता है कि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है तो उसके इसकी रिपोर्ट नजदीकी थाने में देनी चाहिए, यदि वो ऐसा नही करता है तो उसे छह महीने की कारावास और आर्थिक दंड लगाया जा सकता है।
यह अधिनियम बाल संरक्षक की जिम्मेदारी पुलिस को सौंपता है। इसमें पुलिस को बच्चे की देखभाल और संरक्षण के लिए तत्काल व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी दी जाती है। जैसे बच्चे के लिए आपातकालीन चिकित्सा उपचार प्राप्त करना और बच्चे को आश्रय गृह में रखना इत्यादि।
पुलिस की यह जिम्मेदारी बनती है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति (CWC) की निगरानी में लाए ताकि सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके।
इस अधिनियम में बच्चे की मेडिकल जांच के लिए प्रावधान भी किए गए हैं, जो कि इस तरह की हो ताकि बच्चे के लिए कम से कम पीड़ादायक हो। मेडिकल जांच बच्चे के माता-पिता या किसी अन्य व्यक्ति की उपस्थिति में किया जाना चाहिए, जिस पर बच्चे का विश्वास हो, और बच्ची की मेडिकल जांच महिला चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
अधिनियम में इस बात का ध्यान रखा गया है कि न्यायिक व्यवस्था के द्वारा फिर से बच्चे पर किसी भी प्रकार का दबाव न बनाया जाए। इस नियम में केस की सुनवाई एक विशेष अदालत द्वारा बंद कमरे में कैमरे के सामने दोस्ताना माहौल में किया जाने का प्रावधान है। यह दौरान बच्चे की पहचान गुप्त रखने की कोशिश की जानी चाहिए।
विशेष न्यायालय, उस बच्चे को दिए जाने वाली मुआवजा राशि का निर्धारण कर सकता है, जिससे बच्चे के चिकित्सा उपचार और पुनर्वास की व्यवस्था की जा सके।
अधिनियम में यह कहा गया है कि बच्चे के यौन शोषण का मामला घटना घटने की तारीख से एक वर्ष के भीतर निपटाया जाना चाहिए।


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