आयुर्वेद में आहार, भोजन व खानपान एक ऐसा विषय है जहाँ छद्म-विशेषज्ञों का बोलबाला है। आज की चर्चा पुनः आयुर्वेद के हितकारी खाद्य पदार्थों पर केन्द्रित है| यह विषय महत्वपूर्ण है, क्योंकि सोशल मीडिया पर वास्तविक विशेषज्ञों द्वारा लिखे जा रहे यथार्थ-ज्ञान से कई गुना अधिक छद्म-विशेषज्ञों द्वारा अपुष्ट जानकारी डाली जाती है। हितकारी आहार, भोजन और खान-पान के बारे में सबसे ठोस जानकारी चरकसंहिता, सुश्रुतसंहिता और अष्टांगहृदय से प्राप्त होती है। इस जानकारी को पर आधुनिक वैज्ञानिक शोध के प्रकाश में देखने पर भी उपयोगी दृष्टिकोण मिलता है। संहिताओं, शोध और अनुभवजन्य ज्ञान के आलोक में प्रमाणित विशाल भण्डार में से हितकारी और अहितकारी आहार पर संक्षिप्त, किन्तु दैनिक जीवन के लिये पर्याप्त, जानकारी यहाँ दी जा रही है।
हितकर खाद्य पदार्थ, जो अपनी प्रकृति से ही भोजन के रूप में हितकर हैं, उन्हें देखते हैं। स्वभाव से ही श्रेष्ठतम व हितकर ऐसे द्रव्यों का सेवन सामान्यतया लाभकारी है (च.सू. 25.38, चयनित अंश): लोहितशालयः शूकधान्यानां पथ्यतमत्वे श्रेष्ठतमा भवन्ति, मुद्गाः शमीधान्यानाम्, आन्तरिक्षमुदकानां, सैन्धवं लवणानां, जीवन्तीशाकं शाकानाम्, गव्यं सर्पिः सर्पिषां, गोक्षीरं क्षीराणां, तिलतैलं स्थावरजातानां स्नेहानां, शृङ्गवेरं कन्दानां, मृद्वीका फलानां, शर्करेक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैव हिततमानामाहारविकाराणां प्राधान्यतो द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति। अर्थात, भोजन के रूप में शूक-धान्यों में लाल-चावल या लोहितशालि सबसे पथ्यकारी है। शमी-धान्यों में मूँग, विविध स्रोतों से प्राप्त जल में वर्षा का जल, नमकों में सेंधा नमक, शाकों में जीवन्ती का शाक, घी में गाय का घी, दूध में गाय का दूध, तेल में तिल का तेल, कन्दों में अदरक, फलों में द्राक्षा या किशमिश, और गन्ने के रस से बनने वाले द्रव्यों में ईख-शर्करा श्रेष्ठतम व हितकारी आहार माने गये हैं। इन द्रव्यों पर वैज्ञानिक शोध भी यथावत हितकारी होने के निर्विवाद प्रमाण मिले हैं। रक्तशालि (लाल चावल, रेड राइस या ब्राउन राइस) पर 2762 शोधपत्र विश्व की प्रमुख शोध पत्रिकाओं में आज तक प्रकाशित हो चुके हैं। वैज्ञानिकों ने लाल चावल को कैंसररोधी, डायबिटीज-रोधी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीजीनोटॉक्सिक, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रोटेक्टिव, एंटीइन्फ्लेमेटोरी, एंटीडायबिटीज, एवं इम्यूनोमोड्युलेटरी पाया है। इसी प्रकार अदरक पर 3258 शोधपत्र प्रकाशित हुये हैं जिनमें अनेक बीमारियों से बचाव एवं उपचार में अदरक, और शुष्क रूप में सोंठ या शुण्ठी, की भूमिका सिद्ध हुई है।
ऐसे पदार्थ जो हमारे भोजन का अंग तो हैं पर प्रायः अहितकारी खाद्य-पदार्थ हैं, को केवल कभी-कभार ही उपयोग में लेना चाहिये (च.सू. 25.39, चयनित अंश): यवकाः शूकधान्यानामपथ्यतमत्वेन प्रकृष्टतमा भवन्ति, माषाः शमीधान्यानां, वर्षानादेयमुदकानाम्, सर्षपशाकं शाकानां, अविकं सर्पिः सर्पिषाम्, अविक्षीरं क्षीराणां, निकुचं फलानाम्, आलुकं कन्दानां, फाणितमिक्षुविकाराणाम्, इति प्रकृत्यैवाहिततमानामाहारविकाराणां प्रकृष्टतमानि द्रव्याणि व्याख्यातानि भवन्ति। अर्थात, शूक-धान्यों में यवक (जौ का एक प्रकार) और शमी-धान्यों में उड़द सबसे अपथ्यकर है। बरसात के दिनों में नदियों का जल, सरसों का शाक, भेड़ का घी, भेड़ का दूध, फलों में बड़हल, कंदों में आलू, गन्ने से बने पदार्थों में राब आदि ऐसे पदार्थ हैं जो स्वभाव से अहितकर रहते हैं। ये खाये तो जा सकते हैं, परन्तु इन्हें स्वाद या आवश्यकतानुसार संयमित रूप से ही लेना चाहिये। उदाहरण के लिये नदियों के जल पर हुई वैज्ञानिक शोध का एक उदाहरण देखना उपयोगी होगा। बरसात के दिनों में नदियों का जल प्रकृति से ही अहितकर होता है। प्रदूषण नियंत्रण मंडलों द्वारा निरंतर की जा रही मोनिटरिंग के आँकड़े और अन्य वैज्ञानिक अध्ययनों के आधार पर देश की नदियों के प्रदूषण पर प्रकाशित 2500 से अधिक शोधपत्र एवं भारत के जल प्रदूषण पर 9000 से अधिक शोधपत्रों से ज्ञात होता है कि भारत की कोई ऐसी नदी नहीं है जो नगरीय मल-जल, ठोस-कचरा डम्पिंग या औद्योगिक प्रदूषण से प्रदूषित न हो। असल में देश में एक भी ऐसी नदी नहीं है जिसका जल उपचार के बिना पीने योग्य बचा हो। यहाँ तक कि भारत की सबसे पूज्य और पवित्र नदियों का जल भी आज सबसे प्रदूषित है और समुचित उपचार के बिना पीने के पूर्णतः अयोग्य है।
औषधियों के रूप में प्रयुक्त होने वाले पदार्थों और रोचक प्रबंधकीय परिस्थितियों का आंकलन भी उपयोगी है। हालाँकि चरकसंहिता में 152 ऐसे श्रेष्ठ द्रव्य या भाव दिये गये हैं, पर यहाँ केवल कुछ चयनित उदाहरण दिये जा रहे हैं (च.सू. 25.40, चयनित अंश): अन्नं वृत्तिकराणां श्रेष्ठम्, उदकमाश्वासकराणां, क्षीरं जीवनीयानां, मधु श्लेष्मपित्तप्रशमनानां, सर्पिर्वातपित्तप्रशमनानां, व्यायामः स्थैर्यकराणां, अजाक्षीरं शोषघ्नस्तन्यसात्म्यरक्तसांग्रहिकरक्तपित्तप्रशमनानाम्, आमलकं वयः स्थापनानां, हरीतकी पथ्यानाम्, तक्राभ्यासो ग्रहणीदोषशोफार्शोघृतव्यापत्प्रशमनानां, क्षीरघृताभ्यासो रसायनानां, समघृतसक्तुप्राशाभ्यासो बृष्योदावर्तहराणां, अतिमात्राशनमामप्रदोषहेतूनां, एकाशनभोजनं सुखपरिणामकराणां, सर्वरसाभ्यासो बलकराणाम्, मरुभूमिरारोग्यदेशानाम्, आयुर्वेदोऽमृतानाम्। इनमें शरीर में दृढ़ता लाने वाले पदार्थों में अन्न सबसे श्रेष्ठ है, धैर्य व उत्साह पैदा करने वाले पदार्थों में जल, जीवन देने में दूध, कफ व पित्त शांत करने में मधु, वात व पित्तनाशक में घी, शरीर में स्थिरता देने वालों में व्यायाम, शोषघ्न, दुग्धवर्धक, रक्तवर्धक, रक्तपित्त प्रशामक में बकरी का दूध, आयु-स्थिर करने वालों में आँवला, हितकारी पथ्य में हरड़, ग्रहणी-दोष, सूजन या दर्द, पाइल्स, और अधिक घी खा लेने से हुई समस्याओं के निवारण में सदैव छाछ का सेवन, रसायनों में घी और दूध का निरंतर सेवन, पेट में बनने वाली गैस ऊपर चढ़ने से रोकने व ताकत देने वाले पदार्थों में बराबर मात्रा में घी व सत्तू खाना, टॉक्सिन्स उत्पन्न करने वालों में ठूँस-ठूँस कर खाना, सुगमता से पचने में एक समय का भोजन, बलकारक में सभी रसों का भोजन में समावेश, आरोग्यदायी क्षेत्रों में मरू-भूमि, और अमृतों में आयुर्वेद श्रेष्ठ है।
उल्लेखनीय है की आधुनिक वैज्ञानिक शोध में भी उक्त कथन सही पाये गये हैं। उदाहरण के लिये जिस हरीतकी या हरड़ पर वैज्ञानिकों ने अभी तक 1100 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित किये हैं, जिनमें से 88 क्लीनिकल ट्रॉयल्स भी हैं। इन अध्ययनों से ज्ञात होता है कि हरीतकी में एंटीऑक्सीडेंट, रेडियोप्रोटेक्टिव, कीमोप्रिन्टेटिव, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रोटेक्टिव, रीनोप्रोटेक्टिव, अडाप्टोजेनिक, हाइपोलिपिडमिक, हाइपोकोलेस्टेरोलिमिक, इम्यूनोमोड्युलेटरी, एंटीबेक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीटीवायरल, एंटीप्रोटोजोअल, एंटीकार्सीनोजेनिक, एंटीम्यूटाजनिक, एंटीडायबिटीज, एंटीइन्फ्लेमेटोरी, एंटीआर्थराईटिस, एंटीअनाफाइलेक्टिक, एंटीअल्सर, एंटीस्पाजमोडिक, एंटीकेरीज, एंटीअल्जीमर, एंटीएलर्जिक, उदर-विकार-रोधी आदि गुण विद्यमान हैं।
इसी प्रकार आँवला पर पिछले सौ वर्षों में 2000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इन सबसे सिद्ध हुआ है की आँवला में एंटीऑक्सीडेंट, इम्यूनोमोड्यूलेटर, हिपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोप्रेटेक्टिव, रीनोप्रोटेक्टिव, एंटीडायरियल, एंटीएमेटिक, एन्टीकैंसर, एन्टीडायबेटिक, एन्टीइन्फ्लेमेटरी, एन्टीहाइपरटेंसिव, न्यूरोप्रोटेक्टिव, एंटीएथीरोस्क्लीरोटिक, एन्टीवायरल, ऐन्टीप्रोलीफेरेटिव, एन्टीपायरेटिक, एनलजेसिक, एन्टीमाइक्रोबियल, एन्टीएलर्जिक, एन्टीहापरलिपिडेमिक, एंटीहाइपरथायरॉयडिज्म, एल्डोज रिडक्टेज इनहिबिटर, प्रोटीन काइनेज इनहिबिटर, गेस्ट्रोप्रोटेक्टिव, स्मृतिवर्धक, एन्टीअल्जीमर, एन्टीकेटरेक्ट आदि गुण हैं। आँवला अमृत है, जिससे कैंसर, डायबिटीज, हृदयरोग समेत कम से कम 100 रोग ठीक हो सकते हैं, या बचाव हो सकता है| आयु-आधारित रोगोत्पत्ति रोकने में आँवले को श्रेष्ठ आहार व रसायन मानने में शास्त्र व शोध एकमत हैं।
शहद पर मूलतः आयुर्वेद का द्रव्य है। इस पर आयुर्वेद के सन्दर्भ सहित केवल 125 शोधपत्र हैं, जबकि विश्व भर में शहद पर अब तक 24000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। इनमें से 2500 से अधिक शोधपत्र शहद के औषधीय गुणों पर, व 6000 से अधिक भोजन के रूप में शहद की उपयोगिता सिद्ध करते हैं।
आयुर्वेद का सुझाव है कि सामान्यतया भोजन में शालिधान्य, गेहूं, जौ, साठी चावल, हरड़, आँवला, दाख-मुनक्का, परवल, मूंग, खांड, घी, वर्षा का स्वच्छ जल, दूध, शहद, अनार, सैन्धव लवण, और आँखों की ताक़त बढ़ाने के लिये रात में मधु और घी के साथ त्रिफला आदि लिया जा सकता है। साथ ही, स्वास्थ्य-रक्षा या रोग-मुक्ति के लिये जो भी उपयोगी आहार आयुर्वेदाचार्य बतायें, उसे लिया जा सकता है। अनुभव से जिन खाद्य पदार्थों के सेवन से स्वास्थ्य ना बिगड़े या नया रोग न खड़ा हो जाये, उसे भी खाया जा सकता है। भोजन में ऐसे द्रव्यों को भी थोड़ी मात्रा में शामिल किया जा सकता है जो आहार, रसायन और औषधि, तीनों ही प्रकारों में वर्गीकृत हैं। इनमें विविध प्रकार व रंगों के स्थानीय मौसमी फल, खजूर, द्राक्षा, मुनक्का, बादाम, तिल, आँवला, लहसुन, प्याज, सोंठ, कालीमिर्च, पिपली, हल्दी, केसर, जीरा, धनिया, शहद, गुड़, एवं त्रिफला आदि ऐसे द्रव्य हैं जिनका थोड़ा सेवन उपयोगी रहता है। भोजन के अंत में जरूरी हो तो अत्यल्प मात्रा में ही जल लेना चाहिये। वैज्ञानिकों को हाल में पता लगा है कि अत्यंत पानी पीना जहर हो सकता है और प्राण ले सकता है। विश्व की एक अगुआ जर्नल में छपी इस शोध ने जाने-अनजाने आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों के निष्कर्ष को ही दोहराया है।
जठराग्नि की अनुकूलता, वातज, पित्तज या कफज प्रकृति, विकृति, ऋतु, काल, स्थान और रस के पैमाने पर सघन परीक्षण के पश्चात यदि आप आयुर्वेद के कथनानुसार खाद्य पदार्थ ग्रहण करते हैं तो, जैसा कि पूर्व में भी कहा गया है, स्वास्थ्य और बीमारी के मध्य की पहली दीवार बड़ी मज़बूत रखी जा सकती है। जीवन और मृत्यु के मध्य आयुर्वेदोक्त आहार, विहार, रसायन एवं औषधियां आयुर्वेद के चार महत्वपूर्ण रक्षा-कवच हैं। आंकड़े, शोध, संहिताओं में जानकारी तो बहुत है। यहाँ हम सबके लिये सन्देश यह भी है कि इन्टरनेट के गैर-प्रमाणित जानकारी पर भरोसा करने के बजाय अपने आयुर्वेदाचार्य के ज्ञान पर भरोसा कीजिये।
साभार:
डॉ. दीप नारायण पाण्डेय
(इंडियन फारेस्ट सर्विस में वरिष्ठ अधिकारी)
(यह लेखक के निजी विचार हैं और ‘सार्वभौमिक कल्याण के सिद्धांत’ से प्रेरित हैं)
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