इस्लाम किसी भी दूसरी धार्मिक परंपरा से अधिक मानवता की एकता की तालीम देता है क्योंकि यह सिर्फ ईमान ही नहीं है जिसका लोग पालन करें, बल्कि इस्लाम एक पूरी सलीका-ए-जिंदगी है, जिसमें मुसलमान अपनी ईमान पर अमल करते हैं। इस्लाम जिंदगी के सभी क्षेत्रों और सरगर्मियां में रहनुमाई प्रदान करता है। इसके अलावा इस्लाम इसलिए अनोखा है क्योंकि किसी भी षख्स, क्षेत्र या विरासत के नाम पर इसका नाम नहीं रखा गया हैं। इस्लाम नाम अल्लाह पर ईमान रखने और उसकी मर्जी के आगे समर्पण के कारण रखा गया है। दूसरे षब्दों में मुसलमान अल्लाह की मर्जी को अपनी मर्जी पर तर्जीह देते हैं।
मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि़ वसल्लम का पैगाम इस बात की पुश्टि करता है कि यदि इंसानों के रूप में अगर खुदा के रहनुमाई की याद दिलाए बिना अपने हाल पर छोड़ दिया जाता, तो हमेषा रहनुमाई से दूर ही रहते, इसलिए दयालु अल्लाह ने हमें याद दिलाने के लिए नबियों को भेजा। इस्लाम सभी नबियों (अलैहिस्सलाम) के पैगाम की ही तालीम देता हैं और वो पैगाम यह है किः अल्लाह एक है और उसी की इबादत की जानी चाहिए।
इस्लाम लोगों के साथ नेकी का हुक्म देता है और किसी खास वहदत के लिए तर्जी के आधार पर बर्ताव को बढ़ावा नहीं देता, चाहे वो इस्लाम में विष्वास रखने वाले हों या न हों। इस्लाम में कोई भी अल्लाह के हुक्म और नियमों से मुक्त नहीं है। इस्लाम मजहब, विरासत, तालीम और मषाइरी हालत पर ध्यान दिए बिना सभी इंसानों को रहनुमाई प्रदान करता है। इस्लाम के माध्यम से हम खुद के साथ, अल्लाह के साथ, अपने साथी इंसानों के साथ भी अमन प्राप्त करते हैं और इस तरह हम सभी कौम के साथ सदभाव से रह सकते हैं।
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