इस्लाम का मतलब आपसी भाईचारा और मज़हबी रवादारी को बनाए रखना है । इस्लाम सभी लोगों को उनके मज़हबों की परवाह किए बिना ही भाइयों और बहनों के रूप में अपने दामन में पनाह देता है। इस्लामी इतिहास के हर दौर में इस्लाम ने दूसरे मज़हबों के लोगों के प्रति रवादारी का भरपूर ध्यान दिया है।
कुरआन की बहुत सारी अ़ायतों में गैर-मुस्लिमों के साथ इंसाफ और इज्ज़त से पेष लाने पर जोर दिया गया है और विषेश रूप से ऐसे गैर-मुस्लिमों के साथ जो मुसलमानों के साथ अमन से रहते हैं। आज एक दूसरे के बीच मज़हबी रवादारी के साथ अनेक मज़हबों के मानने वालों को एक-दूसरे के प्रति रवादारी का रवैया अपनाने की जरूरत है ताकि मज़हबी दंगों को रोका जा सके। नबियों ने अमन-चैन से रहने और एक-दूसरे के प्रति रवादारी बरतने की दरख्वास्त की है।
इस्लाम मज़हबी रवादारी की तालीम देता है और हमें इस्लामी तालीमों को अपनाना चाहिए ताकि मुसलमान गैर-मुस्लिमों के लिए अच्छी मिसाल स्थापित कर सकें। इस्लाम में कुरआन और पैगम्बर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीमों में वैचारिक आधार है। कुरआन के अनुसार, हर इंसान की इज्ज़त होनी चाहिए जैसे अल्लाह ने उसे तौहफा दिया हो। इस्लाम में नाइंसाफी को सबसे बड़े पापों में से एक माना जाता हैं। आम तौर पर मुसलमान बहुत रवादार होते हैं। हमें अपनों के बीच और पूरी दुनिया में आज इसी गुण पर जोर देना चाहिए। हमारे वहदत के बीच रवादारी की जरूरत है और हमें नीतियों और प्रयासों के माध्यम से रवादारी को बढ़ावा देना चाहिए।
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