महाकुंभ का आयोजन भारतीय सनातन परंपरा और संस्कृति का सबसे बड़ा धार्मिक पर्व माना जाता है, जिसमें नागा साधुओं की विशेष भूमिका होती है। नागा साधु सनातन धर्म के संरक्षक और संस्कृति के प्रतीक माने जाते हैं। उनकी जीवनशैली, आस्था और भक्ति का एक अलग ही आयाम है। महाकुंभ में नागा साधु "शाही स्नान" के दौरान सबसे पहले डुबकी लगाते हैं, जो अमृत स्नान का प्रतीक माना जाता है।
नागा साधुओं के 17 श्रृंगार:
नागा साधु शाही स्नान के लिए विशेष श्रृंगार करते हैं, जिसे "17 श्रृंगार" कहा जाता है। यह श्रृंगार न केवल उनकी भक्ति, बल्कि उनके तप और वैराग्य को भी दर्शाता है। इसमें मुख्यत: निम्नलिखित शामिल हैं:
1. भस्म (राख): नागा साधु अपने पूरे शरीर पर भस्म लगाते हैं, जो पवित्रता और मोह-माया से मुक्त होने का प्रतीक है।
2. जटाएं: उनकी जटाएं उनके त्याग और तपस्या का प्रतीक होती हैं।
श्रंगार
माथे पर त्रिपुंड, जो भगवान शिव की भक्ति का संकेत देता है।
4. रुद्राक्ष की माला: रुद्राक्ष की माला धारण करना शिव भक्ति और आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रतीक है।
5. कमंडल: यह उनके साधु जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
6. तलवार या त्रिशूल: यह उनकी शक्ति और सनातन धर्म की रक्षा का प्रतीक है।
7. अंगूठी: विशेष प्रकार की अंगूठियां उनकी तपस्या और साधना को दर्शाती हैं।
8. ध्यान मुद्रा: उनका पूरा स्वरूप ध्यान और साधना में लीन होता है।
9. आभूषण: चांदी या अन्य धातुओं से बने आभूषण जो उनके वैराग्य को दर्शाते हैं।
10. गेरुआ वस्त्र: हालांकि, कई बार वे वस्त्र नहीं धारण करते, जो पूर्ण वैराग्य का संकेत है।
11. बेलनाकार छड़ी: यह उनकी साधु परंपरा का प्रतीक है।
12. डमरू: भगवान शिव का प्रतीक।
13. चंदन: माथे पर चंदन का लेप भक्ति का प्रतीक है।
14. बाघांबर: बाघ की खाल धारण करना शिव की आराधना से जुड़ा है।
15. माला: विशेष प्रकार की माला, जैसे तुलसी या चांदी की।
16. हवन सामग्री: उनके साथ हवन की सामग्री होती है, जो यज्ञ का प्रतीक है।
17. ध्वजा (झंडा): यह सनातन धर्म और परंपरा की रक्षा का प्रतीक है।
नागा साधुओं का महत्व:
नागा साधु समाज के लिए तपस्या और त्याग का आदर्श होते हैं।
उनका जीवन भगवान शिव को समर्पित होता है।
महाकुंभ में उनकी उपस्थिति सनातन धर्म के संरक्षण और अखाड़ों की परंपरा को दर्शाती है।
शाही स्नान में उनका पहला स्थान धर्म के अनुशासन और अखाड़ों की श्रेष्ठता का प्रतीक है।
नागा साधुओं के बिना महाकुंभ अधूरा माना जाता है। उनकी उपस्थिति सनातन संस्कृति की गहराई और शक्ति का बोध कराती है।
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