जी हां, छठ महापर्व में "संध्याकालीन अर्घ्य" का विशेष महत्व है। नहाए-खाए और खरना के बाद आज श्रद्धालु डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान सूर्य और छठी मैय्या की पूजा करते हैं। इस अवसर पर व्रतधारी व्रती महिलाएं विशेष रूप से व्रत रखती हैं और वे घाट पर पहुंचकर संध्या समय डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह अर्घ्य देने की परंपरा भक्तों द्वारा सूर्यदेव को श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है, जिसमें वे समृद्धि, स्वास्थ्य और सुख-शांति की कामना करते हैं।
इस महापर्व के दौरान व्रती एक लंबी और कठिन साधना में संलग्न होते हैं और अगले दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण करते हैं। इस प्रकार, संध्या और प्रातःकालीन अर्घ्य का यह क्रम भगवान सूर्य की उपासना और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अत्यधिक पवित्र माना जाता है।
छठ पर्व के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य का दिन कहा जाता है। इस दिन व्रती भक्त पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं और संध्या के समय डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर भगवान सूर्य और छठी मैय्या की पूजा करते हैं। ऐसा माना जाता है कि सूर्य देव की आराधना से संतान प्राप्ति, संतान की सुरक्षा, सुख-समृद्धि और जीवन में शांति का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पूजन विधि:
1. पूजा सामग्री की तैयारी: व्रतियों द्वारा गंगा या किसी पवित्र नदी, तालाब या जलाशय के किनारे पूजा का स्थान तैयार किया जाता है। वहाँ बांस की टोकरियों में फल, ठेकुआ, चावल के लड्डू, नारियल, और अन्य पूजन सामग्री रखी जाती है।
2. भगवान सूर्य और छठी मैय्या की पूजा: व्रतियों द्वारा भगवान सूर्य की पूजा के बाद, छठी मैय्या की आराधना की जाती है। जल में खड़े होकर सूर्यदेव को सच्चे मन से आह्वान करते हुए संतान सुख, लंबी उम्र और समृद्धि की कामना की जाती है।
3. संध्या अर्घ्य का समय: संध्या अर्घ्य का समय सूर्यास्त के कुछ समय पहले होता है। व्रती जल में खड़े होकर बांस की सूप में ठेकुआ, फल और अन्य पूजन सामग्री के साथ सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं।
संध्या अर्घ्य का समय: संध्या अर्घ्य का समय हर स्थान के अनुसार थोड़ा अलग हो सकता है, इसलिए स्थानीय समय को देखकर अर्घ्य अर्पण करें।
इस पूजा से व्रती भगवान सूर्य और छठी मैय्या का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं, जो उनके जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है।
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